डरे हुए प्रेमी…
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प्रेम
दुस्साहसी बनाता है
तो
उसे खोने का डर भी
डराता है।
क्योंकि
डर में
घुला रहता है
डरे हुए
प्रेमियों का प्रेम।
जिसमें
ऐम (aim)
और आई (i)
एम (am)
नहीं होता।
डरा हुआ
प्रेम
ऐसा ही होता है।
उसमें
चाहत होती है
बिना किसी
चाह के।
वह
जी लेता है
प्रेम से
बिछड़ने पर भी।
वह डरता है
अपने प्रेम के
कम
होने को लेकर
इसलिए
जीवन भर
धड़कता है
उसका डरा हुआ प्रेम
सीने के
एक कोने में।
और
प्रेम पाने वाले
एक दिन
उसे खो देते हैं
पाने
न्योछावर करने
और
लुटाने के बाद भी।
इसीलिए
होनी चाहिए
जनगणना
इन डरे हुए
अल्पसंख्यक
नहीं–नहीं,
बहुसंख्यक
प्रेमियों की,
जिनके प्रेम
की साइकिल का
कुत्ता
अक्सर छोड़ देता था
अपना घाट
अपने प्रेम को
सामने पाकर
और वह
लरज़ता रह जाता है
प्रेम को
लरज़ते हुए
जाते देखकर।
अब भी वह
प्रेम के इन किस्सों को
संजोकर
हर दिन लरज़ता है
खुद में छिपे
उस डरे हुए
प्रेमी की तरह
और उसका प्रेम
बरसता है
किसी ठूंठ पर।।
– केडी