भोपाल। जंतूर, चिकारा, पावा, बड़ा ढोल, टिमकी, ढहकी और सिंगी… ये कुछ ऐसे दुर्लभ वाद्य यंत्र हैं, जिनके बारे में नई पीढ़ी के लोग शायद ही जानते हों। इनमें से कई लुप्त हो चुके हैं।
लेकिन अब इन्हें लघु फिल्मों, और पाठ्य पुस्तकों में देखा-पढ़ा जा सकेगा। राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) पश्चिम भारत के राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, महाराष्ट, गोवा तथा केंद्र शासित प्रदेश दीव दमन और दादरा नगर हवेली के पारंपरिक लोक कलाओं और वाद्ययंत्रों को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करने के लिए शोध करा रहा है।
अपनी कला, संस्कृति और परंपराओं के लिए ख्यात मध्य प्रदेश की जनजातियों के कई ऐसे वाद्य यंत्र हैं, जो दुर्लभ होने के साथ-साथ चलन से भी बाहर हो चुके हैं। देश की लोककलाओं को शिक्षा से जोड़ने के उद्देश्य से एनसीईआरटी ने एक प्रोजेक्ट पांच साल पहले शुरू किया था।
पश्चिम भारत की पारंपरिक लोक कलाओं का दस्तावेजीकरण” नामक इस प्रोजेक्ट का मध्य प्रदेश में श्यामला हिल्स स्थित क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान (आरआइई) द्वारा संचालन किया जा रहा है। इसके तहत वर्ष 2020 में मध्य प्रदेश के दुर्लभ वाद्य यंत्रों पर काम शुरू किया गया था।
20 लाख के इस प्रोजेक्ट को मार्च 2022 तक पूरा कर रिपोर्ट एनसीईआरटी को भेजी जानी है। परियोजना समन्वयक प्रो. सुरेश मकवाना ने बताया कि लोक कलाकारों के साथ कार्यशाला आयोजित करने के बाद संबंधित अंचल में जाकर वाद्य यंत्र को देखा जाएगा।