इंदौर। कोरोना की तरह अब डेंगू भी वेरिएंट बदल रहा है। इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) को प्रदेशभर से भेजे गए सैंपल की जांच में इसकी पुष्टि हुई है। डेंगू के बदले हुए वैरिएंट का पता लगाने के लिए आईसीएमआर ने ही कई जिलों से सैंपल्स मंगवाए थे।
इनमें से कुछ सैंपल में डेंगू के नए और घातक वेरिएंट मिले हैं। प्रदेशभर के शहरों में से इंदौर से भी सेंपल भेज गए थे। इंदौर के इन सेंपल में भी डेंगू के डी-2 व डी-3 वैरिएंट सामने आए हैं। डाक्टर्स के मुताबिक ये दोनों वेरिएंट ज्यादा घातक होते हैं। डेंगू वायरस के सीरो-टाइप को समझने के लिए यह शोध की गई थी। जबलपुर स्थित आईसीएमआर ने सेंपल की जांच की। जानकारी के अनुसार स्वास्थ्य विभाग द्वारा भेजे गए कुल 25 सैंपल्स में से 12 सैंपलों की जांच में 11 सैंपल्स पॉजिटिव पाए गए।
इनमें सात सेंपलों में ज्यादा संक्रामक माने जाते टाइप-2 और 3 मिला है। एक मरीज के सेंपल में डी-1 भी मिला है। विशेषज्ञों के अनुसार डेंगू में डी-2 ज्यादा घातक होता है। इससे एक्यूट हेमोरेजिक फीवर में जाने की आशंका अधिक होती है। गौरतलब है कि डेंगू का डी2 वैरिएंट ही महाराष्ट्र और गोवा में बीमारी की बड़ी वजह था। पहले से कोई डेंगू संक्रमित हो तो उन्हें टाइप-2 ज्यादा घातक रूप से संक्रमित कर सकता है। यह तेजी से फैलता है। आईसीएमआर ने राष्ट्रीय स्तर पर भी इसकी स्टडी करवाई थी।
विशेषज्ञ बताते हैं कि डी1, डी2, डी3, डी4 डेंगू वायरस के ही अलग-अलग प्रकार हैं। आमतौर पर इन सभी वेरिएंट के लक्षण समान होते हैं। खास बात यह है कि इंदौर में इस साल सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार ही डेंगू के 1119 मामले सामने आ चुके हैं। हालांकि निजी अस्पतालों और लेबोरेटरीज की मानें तो पॉजिटिव मरीजों की संख्या इससे कई गुना ज्यादा है। सितंबर में तो यह स्थिति बनी थी कि डेंगू मरीजों के लिए सरकारी व निजी अस्पतालों में बेड कम पड़ने लगे थे।
कोरोना मरीज को लगाना पड़ा रेमडेसिविर 21 दिन में 113 केस, 1 मौत भी दर्ज
इंदौर में 21 दिन में कोरोना के 113 केस मिल चुके हैं। 21 नवंबर को एक मौत भी दर्ज हो चुकी है। एमआरटीबी हॉस्पिटल में एडमिट एक मरीज को रेमडेसिविर इंजेक्शन तक लगाने की जरूरत पड़ गई। एमआरटीबी में कोरोना के 10 मरीज भर्ती हैं। इनमें एक 7 साल का बच्चा भी शामिल है। सभी में सर्दी-खांसी और बुखार के लक्षण हैं। डॉ. सलिल भार्गव के मुताबिक फिलहाल डेल्टा वैरिएंट से संक्रमित मरीज ही सामने आ रहे हैं। ये उनके फेफड़ों और अन्य अंगों को ज्यादा प्रभावित नहीं कर रहा।
पहले 2 या 3 मरीज ही आ रहे थे, कुछ दिन से संख्या बढ़ गई है। जिस मरीज को रेमडेसिविर इंजेक्शन देने की जरूरत पड़ी, उन्हें डायबिटीज है। उन्होंने यह भी बताया कि जैसे पिछली बार कोविड के बाद मरीजों में ब्लैक फंगस भी नजर आ रहा था, फिलहाल वैसा कुछ नहीं है। कोविड मरीजों का पुराने प्रोटोकॉल के अनुसार ही इलाज किया जा रहा है। अभी इसमें कोई मेजर चेंज नहीं आया है। मरीजों को स्टेरॉयड जरूरत के आधार पर, रेमडेसिविर इंजेक्शन सहित एंटीबायोटिक, सपोर्टिव ट्रीटमेंट अभी वैसे ही चल रहा है।