क्या सांसदों या विधायकों को यह बताने की भी जरूरत है कि संसद या विधानसभा सत्र के दौरान सदन में पहुंचना उनकी जिम्मेदारी है? लेकिन अनेकों बार ऐसा देखा जाता है कि किसी महत्वपूर्ण दिन पार्टियों को अपनेअपने सदस्यों को सदन में पहुंचने के लिए ताकीद करना पड़ता है।
पिछले दिनों खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस तरह के आचरण को लेकर सांसदों की क्लास लगाई और नसीहत दी कि सांसद सदन की कार्यवाही में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें और जिम्मेदारी व कर्तव्य का निर्वहन करें। प्रधानमंत्री का अपने दल के सांसदों को संसद के सत्र में नियमित रूप से भाग लेने के लिए चेतावनी देना अपने आप में असाधारण बात है, क्योंकि बीजेपी नेता खुद को बेहद अनुशासित नेता के तौर पर प्रचारित करते रहते हैं।
दूसरी ओर, यह अनुभव गहरा होता जा रहा है कि संसद सदस्य आम आदमी के मुद्दों की चिंता से ज्यादा राजनीतिक लाभ का ध्यान अधिक रख रहे हैं। संसद चलाना बेशक सरकार की जिम्मेदारी है लेकिन विपक्ष का भी काम भी उतना ही महत्वपूर्ण है। लेकिन ताज्जुब कि जो पार्टी जब विपक्ष में होती है संसद में शोरगुल करना अपना लोकतांत्रिक अधिकार समझती है और जो सत्ता में होती है वह विपक्ष पर सदन न चलने का आरोप लगाती रहती है।
संसद में किसी भी ओर से प्रतिकूल व्यवहार चाहे वह सत्ता के द्वारा संख्या बल की हनक में किया गया हो या फिर विपक्ष ने योजनाबद्ध तरीके से किया हो, संसदीय मूल्यों और लांकतांत्रिक व्यवस्था के खिलाफ है। संसद में सदस्यों का न पहुंचना भी इसी श्रेणी में आता है। जनता के चुने हुए प्रतिनिधि के लिए यह आवश्यक है कि वह सदन में अपनी जनता की बात रखे। क्योंकि जनता ने उसे इसीलिए चुनकर संसद या विधानसभा भेजा है।
इसके लिए शीर्ष नेताओं को नसीहत देने की जरूरत ही नहीं पड़नी चाहिए। सांसद कोई बच्चे तो हैं नहीं, ये भी नहीं है कि उनको समझ नहीं है, तो उन्हें ये बात कहने की जरूरत नहीं पड़नी चाहिए। लेकिन यह बहुत दुख की बात है कि सांसदों को यह बताना पड़ रहा है, या इस बात की चेतावनी देनी पड़ रही है कि वे संसद के सत्र में उपस्थित रहें। हालांकि कई बर ऐसा भी होता है कि किसी आवश्यक कार्य से सांसद या विधायक सदन में उपस्थित नहीं हो पाते।
लेकिन किसी गैरबाजिब कारण के संसद या सदन में न पहुंचने की प्रवृत्ति अपने जिम्मेदारियों की प्रति लापरवाही है। संसदीय दल की बैठक में प्रधानमंत्री ने सांसदों की अनुपस्थिति को गंभीरता से लिया। उन्होंने साफ हिदायत दी कि वे खुद में बदलाव लाएं, नहीं तो बदलाव वैसे ही हो जाता है। प्रधानमंत्री की इस बात में जरूरी संदेश छिपे हो सकते हैं, मगर इतना साफ है कि अगर सांसद अपनी जिम्मेदारी के प्रति गंभीर नहीं होते हैं तो लोकतंत्र में जनता ऐसे नेताओं का भविष्य तय करती है।